फातिमा शेख को आधुनिक भारत की पहली महिला शिक्षक माना जाता है। 19वीं सदी में शिक्षा जातिगत भेदभाव के कारण कुछ विशेष वर्ग तक ही सीमित थी, महिलाओं को भी शिक्षा के समान अधिकार नहीं थे। ऐसे समय में मुस्लिम और दलित महिलाओं के शिक्षा और विकास के लिए पुणे की फातिमा शेख ने समाज सुधार के कई काम किए। लेकिन फातिमा के लिए ये कोई आसान काम नहीं था। उन्हें उस समय के रूढ़िवादी समाज के विरोध का सामना करना पड़ा था। फातिमा को विशेष रूप से उच्च जाति के हिंदुओं और रूढ़िवादी मुसलमानों के गुस्से से भी जूझना पड़ा था। फातिमा शेख ने समानता आंदोलन सत्यशोधक समाज में भी हिस्सा लिया था, जिसका उद्देश्य हाशिये पर खड़े पिछड़े वर्ग के लोगों को शिक्षा के समान अवसर देना था।
साल 1851 में फातिमा ने पुणे में अपने स्कूल भी शुरू किए थे। इस लड़ाई में फातिमा के भाई मियां उस्मान शेख ने उनका साथ दिया था। वे समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के मित्र थे । समाज से निकाल दिए जाने के बाद फुले दंपती को उस्मान शेख ने अपने घर पर रहने दिया था फातिमा शेख ने देश का पहला महिला स्कूल खोलने के लिए ज्योतिबा फुले, और सावित्रीबाई फुले के साथ काम किया था। उन्होंने 1848 में एक स्वदेशी पुस्तकालय की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी, जो लड़कियों के लिए भारत के पहले स्कूलों में से एक है। फातिमा शेख ने अहमदनगर के एक मिशनरी स्कूल में टीचर्स ट्रेनिंग भी ली थी। इसके बाद वह और सावित्री बाई लोगों के बीच जाकर महिलाओं, बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती थी।
Satyashodhak, obc, Mahatma phule, dr Babasaheb Ambedkar, Bahujan